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हमारे बारे में।

राजा विसेन द्वारा विसनगढ़ नाम से बसाया गया नगर का नाम बदलते बदलते अब बिसौली के नाम से प्रसिद है। किवदन्ति है कि यहां बासों का जंगल होने के कारण इसको बासौली कहा गया, अब यह पंचाल भूमि के अन्तर्गत आता था। तथोपरान्त यहां कठैरिया राजाओ का कब्जा होने के कारण यह कठैर नाम से प्रसिद रहा तथा उसके बाद यहां रोहिला लोगो का कब्जा होने से हिमालय एवं गंगा के बीच का क्षेत्र रुहेल खण्ड नाम से प्रसिद हुआ,रुहेला नवाबों ने यहां पर अनेकों कुएं,मस्जिदे,सराय एंव पिआऊ आदि का निर्माण कराया। बिसौली नगर मे मस्जिद,कला(बड़ी मस्जिद), जुमा मस्जिद, बिसौली रुहेला नवाब हदे खां का मकबरा, हवेली आदि स्थान मौजूद है। यहां पर आजकल गेहूं,आलू,मैथां(पिपर मिंट) की खेती प्रमुखता से होती है, यहां राजा सत्यपाल के किले के अवशेष मौजूद है, जिसको रुहेला नवाब दुदे खां ने पुनः निर्माण कर अपने इस्तेमाल मे लिया था। फ़रुखाबाद, मुरादाबाद स्टेट हाइवे पर बदायूं से 40 किलोमीटर दूर कस्बा नगर पालिका परिषद बिसौली है।नगर से करीब 8 किलोमीटर बदायूं की ओर ग्राम सिंथरा की झील पक्षी विहार के लिये मशहूर है, जहां सर्दी का मौसम शुरु होते ही पंक्षीयों का आना शुरु हो जाता है। ग्राम रहेणियां मे गौरववंशीय राजपूतों के आस्था के प्रतीक कुल देवता बाक कालसेन का मंदिर मौजूद है,जिसके गौर राजपुत चेत्र मास की अष्टमी पर प्रतिवर्ष अपने बच्चो का मुन्डन कराते है।यह क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रतिक्रियों का केन्द्र रहा है, जहां चौधरी बदन सिंह,त्रिवेणी सहाय की कर्म स्थली रही है, जिन्होने आसफपुर रेलवे स्टेशन को अपने कब्जो मे लिया और हमेशा अंग्रजों की आंखों के किरकरी बने रहे।

नगर पालिका परिषद् बिसौली

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अध्यक्ष

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अधिशाषी अधिकारी